यूरेशिया भाषा परिवार


                                                यूरेशिया भाषा परिवार 

the santli world

             
               यह परिवार दो महादेश यूरोप एवं एशिया में बोली जाती है। मुख्यतः यह दो महादेशों के क्षेत्र में फैला है, अतः इन्हीं के आधार पर यह नाम पड़ा है । इसमें मुख्यतः बारह भाषा परिवार है। 

1. Afro-Asiatic
2. Caucasian
3. Uralic
4. Altaic
5. Austro-Tai
7. Eskimo-Aleut
9. Sino-Tibetan
6. Chukchi-Ramchatka
8. Oceania
10. Indo-European Foer
11. Dravidian
12. Austro-Asiatc


    1. Afro-Asiatic : यह परिवार अफ्रीका एवं एशिया महादेश में फैला है। इसका क्षेत्र मोरक्को, एविसिनिया, एथोपिया, सोमालीलैण्ड, मिस्र, इराक, अरब, सीरिया, फिलिस्तीन आदि भू-भागो में विस्तृत है। इनकी मुख्य शाखाएँ हिब्रू, अरबी, प्राचीन मि्री, अकादियन आदि है।

     2. Caucasian : कोकेशियन भाषा परिवार का क्षेत्र, कैस्पियन सागर और कृष्णा सागर के बीच में काकेशास पर्वत का पहाड़ी क्षेत्र हैं, इस परिवार की भाषाएँ इसी क्षेत्र में बोली जाती है। इनकी मुख्य शाखाएँ कवार्दियान, अवर, चेचेन वासियान, जार्जियान, मिंग्रलियन आदि है।

     3. Uralic : इस परिवार का क्षेत्र यूराल पर्वत के आस-पास फैला हे। इनकी मुख्य शाखाएँ फिनिश, इस्तोनिया, हंगेरियन आदि भाषा है।

      4. Altaic : अल्टाई भाषा परिवार अल्टाई पर्वत के आस-पास फैला है। इनकी मख्य शाखाएँ तुर्की, ऐजेर बैजानी, उजेबक, मंगोलियन, कजाक आदि हैं।

      5. Austro-Tai : यूरेशिया भाषा परिवार की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण शाखा है।

      6. Chukchi-Ramchatka : इनका क्षेत्र चीन, वर्मा आदि भू भाग है।

      7. Eskimo-Aleut : इसका क्षेत्र पूर्वी एशिया एवं उत्तरी एशिया भाग रहा है।

    ৪.Oceania : प्रशान्त महासागरीय भाषा, पश्चिम में मडागास्कार से लेकर पूरब में इस्टार द्वीप तक तथा उत्तर में फरमोसा से लेकर दक्षिण में न्यूजीलैण्ड तक जावा, सुमात्राबोर्नियो, बाली, फिलपीन, हवाई, मलाया, फरमोसा आदि में फेला हुआ है। इनकी मुख्य भाषाएँ मलय, इंडोनेशियन, हवाइयन, समोअन, फीजियनन, न्यूजीलैंड, मलय-पालिनेशियन आदि है।

     9.Sino-Tibetan : यह परिवार चेीन तथा तिब्बती के आस-पास बोली जाती है। इसा के बोलने वाले असम, कश्मीर, तथा हिमालय प्रदेश में है। इसकी शाखाएँ लुशेई, मेइथेईमारो, अक तथा बोड़ो आदि है।

       10. Indo-European : भारोपीय, भाषा, भारत से लेकर पूरे यूरोप तक बोली जाने के कारण इस परिवार को भारोपीय परिवार कहते हैं। इसका क्षेत्र भारत, बंगला देश, श्रीलंकापाकिस्तान, अफ्गानिस्तान, इरान, इराक एवं यूरोप महादेश में रूस, रूमानिया, फ्रांस, पु्तगालमोेन, इंग्लैण्ड, जर्मनी तथा अमेरिका, कनाडा, अफ्रीका और अस्ट्रेलिया के भू-भाग में फैला है। भारोपीय भाषाएँ मुख्यतः दो भाषा परिवार है :-

(क) केतुम् (ख) सतम्

      (क) केतुम्- केतुम् भाषा परिवार के Hittite (हितो) भाषा सबसे पुरानी है। यह मभाषा धीरे-धीरे लुप्त हो गई। उसके बाद Tocharian भाषा आई, यह भाषा चीन में मिलती थी, यह भाषा भी लुप्त हो गई ।इसके बाद Italic भाषा का प्रयोग का दौर आया। यह भाषा रोम के आस-पास बोली जाती थी। Italic भाषा की प्रमुख शाखाएँ हैं-
1. French
2. Romansh
3. Italian
4. Spanism
5. Portugues
6. Romanian
7. Germanic

 ख.सतम्-सतम् भाषा परिवार में मुख्यतः पाँच भाषा परिवार है:-

                1. Albanian
                2. Slavic
                3. Arbenian
                4. Baltic
                5. Indo-Irania


1. Albanian अल्बेनियन भाषा-अल्बेनिया तथा युनान के कुछ भागों में बोली जाती हैं।

2. Slavic : यह भाषा रूस, पोलैण्ड, उक्रेन, चेकोस्लोवाकिया, योगस्लाविया, बल्गारिया आदि क्षेत्रों में बोली जाती है।

3. Arbenian : यह भाषा यूरोप, एशिया एवं रूस में बोली जाती है।

4. Baltic : यह भाषा बाल्टिक सागर के किनारे में बोली जाती है।

5. Indo-Irania: भारत-ईरानी भाषा भारोपीय भाषा परिवार की बहुत महत्त्वपूर्ण भाषा है। यह भाषा परिवार दो शाखाओं में बँटा है। 1. Indo or Indic 2. Iranian

1. Indo or Indic- INDO भाषा 1500 ई. पू. में पर्याप्त लिखित सामग्री मिली है। इसकी सामग्री तुर्की के आस-पास मिलते हैं। इसके बाद 'वैदिक संस्कृत' भाषा 1,000 ईसा पूर्व में रही होगी, परन्तु इसकी कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता है। उसके बाद 'पालि' भाषा 500 ईसा पूर्व की है। पालि साहित्य का सम्बन्ध प्रमुखतः 'भगवान बुद्ध' के समय से है। उसके बाद 'प्राकृत' भाषा का विकास हुआ। प्राकृत साहित्य का विकास 200 ई. पूर्व का मानी जाती है। इस भाषा की साहित्य 'अशोक' के शिलालेखों में प्राप्त होता है। प्राकृतों के प्रसंग में अनेक नामों का उल्लेख मिलता है। किन्तु प्रमुख भेद-शौरसेनी, पैशाची, ब्राचड, खस, महाराष्ट्रीअर्द्ध-मागधी, आदि है। उसके बाद भारोपीय भाषा का अन्तिम रूप 'अपभ्रंश' के रूप में दिखाई पड़ता है। अपभ्रंश का विकास प्राकृत कालीन बोल-चाल की भाषा से हुआ है।

1. अपभ्रंश शौरसेनी से पश्चिमी हिन्दी, गुजराती एवं राजस्थानी का विकास हुआ है।
2. अपभ्रंश पैशाची से लहँदा एवं पंजाबी का विकास हुआ है।
3. अपभ्रंश ब्राचड से सिन्धी का विकाश हुआ है।
4. अपभ्रंश खस से पहाड़ी का विकास हुआ है।
5. अपभ्रंश महाराष्ट्री से मराठी का विकास हुआ है।
6. अपभ्रंश अद्द्धमागधी से पूर्वी हिन्दी का विकास हुआ है।
7. अपभ्रंश मागधी से बिहारी, बंगला, उड़िया और असमिया का विकास हुआ है।

2. Iranian इरानी भाषा लगभग 600 ई. पूर्व की है, इसमें दो शाखाएँ हैं :-
                  1. Avestan 2. Old Persian

(1.) Avestan: अवेस्ता इरानी में साहित्य का विकास बहुत पहले से आरम्भ हो गया था, किन्तु आज उनकी साहित्य-निधियों का कुछ भी पता नहीं है। वहाँ का प्राचीनतम साहित्य पारसी धर्मग्रन्थ 'जेन्द अवेस्ता' आवेस्ता भाषा में है। उसकी भाषा 'ऋग्वेद' की भाषा से मिलती-जुलती है।

(2) Old Persian : प्राचीन ईरान के पश्चिमी भाग को 'फारस' कहते हैं। वहाँ की भाषा प्राचीन फारसी Old Persian थी।

11. Dravidian: द्राबिड़ परिवार का क्षेत्र उत्तरी लंका, लक्ष द्वीप, बलूचिस्तान, द्षिण भारत, मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा तथा असाम है। इसकी तीन मुख्य शाखाएँ हैं:-
(क) उत्तरी शाखा
(ख) मध्य शाखा
(ग) दक्षिणी शाखा

(क) उत्तरी शाखा-इसमें मुख्यतः 'ब्राहुई' (बलूचिस्तान), मालतो (बंगाल, राजमहल, संताल परगना) एवं कुडुख (राँची, मध्य प्रदेश) भाषा है।

(ख) मध्य शाखा-इसमें मुख्यतः 'तेलुगु' (आन्ध्र प्रदेश), कुई (उड़िसा), तुलु (बम्बई), कोलामी (पश्चिमी बरार), कुबि, कन्डा आदि भाषाएँ हैं।

(ग) दक्षिणी शाखा-इसमें मुख्यतः 'तमिल' (तामिलनाडु), सिंहली (सिंगापुर), कन्नड़ (कर्नाटक), मलयालम (केरल), खड़गो (केरल का उत्तरी क्षेत्र) आदि है।

12. Austro-Asiatic: आग्नेयदेशीयः आस्ट्रो का अर्थ है दक्षिण में बोली जाने वाली भाषा। इसे आष्ट्रिक तथा आग्नेय परिवार भी कहा गया है। Austro-Asiatic भाषा, मैलेपालिनेशियन भाषा परिवार की एक शाखा है। मैले-पालिनेशियन भाषा के मुख्यतः दो भाषा परिवारों में विभक्त हैं : -
1. Austro-Asiatic  2. Austro-Nesian

1. Austro-Asiatic : कुवार सिंह के अनुसार-मानवशास्त्रियों ने आष्ट्रिक भाषा परिवार की जनजातियों को दो वर्ग में विभक्त किया है:-
(क) आस्ट्रो एशियाटिक (ख) आस्ट्रो-नेशियन

(क) आस्ट्रो एशियाटिक परिवार के अन्तर्गत कोल तथा मुण्डा जनजाति की बोलियों को
शामिल किया जाता है।

(ख) आस्ट्रो-नेशियन परिवार की भाषाओं में इण्डोनेशिया, माइक्रोनेशिया, मैलिनेशिया, पौलेनिशिया, आदि की भाषाएँ शामिल की जाती हैं।

dr. भ्रोलानाथ तिवारी के अनुसार आस्ट्रो-एशियाटिक परिवार को आष्ट्रिक अथवा आग्नेय িযार भी कहा गया है। पहले इस पारवार का क्षेत्र विस्तृत था, किन्तु अब स्यामब्रह्माकीमोवारकम्बोडिया, बगला देश, उड़ीसा, मध्य-प्रदेश तथा तामिलनाडू आदि में ही यह सीमित  है। 
 इसके मुख्य वर्ग है:-

(क) पश्चिमी (ख) पूर्वी

(क) पश्चिमी-इन भाषाओं को मुण्डा या कोल कहते हैं। इस वर्ग की मुख्य भाषाएँ


               1. संताली (पूर्वी बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, असाम तथा पश्चिमी बंगाल)
               2. मुण्डारी ( पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, मध्य प्रदेश तथा तामिलनाडू)।
               3. भूमिज आदि है।

(ख) पूर्वी-ब्रह्मा और स्याम की मोन और खमेर तथा अन्नाम की अन्नामी आदि भाषाएँइसके अन्तर्गत हैं। 
पी. डबल्यू. स्मिट ने इन्हें तीन मुख्य शाखाओं में विभाजित किया है। 

               1. खासी, वाआङकू, रियाङ, प्लाउङ और दनउनिकोबरत ।
               2. सेमङ तेम्बे, सेनोई और सकई।
               3. मोनख्मेर भाषा, अन्नामीज, वास्सिसी और मुण्डा।
प्रो. एच. जे. पिन्नो ने (सन् 1963 ई. में) इसका वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया  है। 

(क) पश्चिमी शाखा   (ख) पूर्वी शाखा

(क) पश्चिमी शाखा : -
1. पश्चिमी : निहाली
2. पुर्वी : मुण्डा
(अ) उत्तरी   1. खेरवारी (संताली, मुण्डारी, कोरवा आदि)
                 2. कोर

(आ) दक्षिणी    1. केन्द्रीय (खड़िया, जुवाङ)
                    2. दक्षिणी-पूर्वी (सोरा, गोरूम, गोतोब आदि) ।

(ख) पूर्वी शाखा :-
1. पश्चिमी    : निकोबार ।
2. पूर्वी        : प्लाउङ-ख्ेर।
                 : (अ) पश्चिमी-खासी।
                   (आ) उत्तरी-प्लाङ-वा (प्लाउड वा, रियाङ लवा आदि)
                    (इ) पूर्वी-मोनख्मैर (मोर-खेर, यहनार, स्त्रो आदि) ।
                    (ई) दक्षिणी मलक्का 1. सकाई  2. जाकुद 3. सेमङ

2. Austro-Ncsian: आग्नेय द्वीपीय-
इस भाषा परिवार की भाषाओं की वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया गया है :-
1. इण्डीनिशियन     (क) मलाई
2. माइक्रोनेशियन    (क) फिलिपीनो, (ख) केरोलिनिस ।
3. मैलिनेशियन       (क) पिजी
4. पेलिनेशियन       (क) सामआ, (ख) माउरी, (ग) हावई आदि ।

   मैले-पैलिनेशियन भाषाओं का क्षेत्र मध्य भारत से लेकर असाम, वर्मा होते हुए कम्पुचिया और इण्डोनिशिया, कम्बोडिया, वियतनाम, लाओस, फिलिपाईन आदि द्वीप-समूह में फैला है। इन भाषाओं को 'प्रोक्टो-आस्ट्रोलाइड' भी कहा गया है।

     आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा के अनुसार आस्ट्रोनेशियाई परिवार का क्षेत्र पश्चिम में अफ्रीका के तटवर्ती मडागास्कर से लेकर पूर्व इस्ट द्वीप तक और उत्तर में फरमोसा से लेकर दक्षिण में न्यूजीलैण्ड तक। जिसमें उल्लेखनीय है, मलय प्रायद्वीप, जावा, सुमात्रा, बोनिया, सिलिबिज, वाली, फिलिपीन, न्यूजीलैण्ड, समोआ, हावई, ताहिती और प्रशान्त महासागर के बहुत सारे छोटे-छोटे द्वीप है। इसकी प्रमुख शाखाऐएँ हैं।

1. हिन्दी द्वीपीय (इन्दोनिशियाई)-
        मलाया, जावा सुमात्रा, बोनिया, सिलिविज, बाली, फिलिपीन, फारमोसा, मडागारकर, आदि। इन द्वीपों तक भारत का प्रभाव रहने के कारण ही इन्हें 'इन्दी नेशिया' अर्थात 'हिन्द-द्वीप' कहा गया है।

2. कृष्णद्वीपीय (मैलानेशियाई)-
यह शब्द ग्रीक भाषा से निष्पन्न है । 'मैलानेशिया', मैलास-काला, नेसीस=दीप, अर्थात् 'कृष्ण द्वीप' । इसमें न्यू हेब्रिडिज, फिजी द्वीप, सोलोमन दवीप, सांताकुज आदि है।

3. लघुद्वीपीय (मिक्रोनेशियाई)- 
          मिक्रोनेशिया - मिक्रोस=लघु, नेसीस=द्वीप, अर्थात् "लघु-द्वीप' इसमें गिलर्बट, मश्शाल, कैरोलिन द्वीप, मारियान प्रायद्वीप आदि हैं।

4. बहुद्वीपीय (पोलिनेशियाई)-
               पोलिनेशिया पोलिस= अनेक या बहु, नेसीस=द्वीप। अर्थात् 'बहुद्वीप' । इसमें समोआ, न्यूजीलैण्ड, ताहिती, हवाई द्वीप, रारोतोंगा, तुआमोत द्वीप,
इस्टर द्वीप आदि हैं। 





                                Eurasia Language Family

Afro Asiatic, Caucasian, Uralic, Altaic, Austro Tai  ,Chukch Ramchataka Aleut ,  Eskimo,  Oceania,  Sino Tibetan, Indo  European, Dravidian , AustroAsiatic






 

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